1 यदि लग्नेश लग्नगत हो , तो जातक जीवन – भर नीरोग तथा बीमारियों से दूर रहता है । मान – सम्मान और धन की उसे कमी नहीं रहती तथा वह लम्बी आयु तथा विविध भोगों का भोग करता है ।
ऐसा जातक अपने कार्यों के कारण ख्याति भी अर्जित करता है ।
2 यदि लग्नेश द्वितीय भाव में हो , तो जातक साहसी , स्थूलाकृति तथा राजा की भांति ऐश्वर्यशाली होता है । उसकी आयु दीर्घ होती है तथा अच्छे कार्यों में उसकी रुचि रहती है । उसे परिवार का पूर्ण सुख मिलता है ।
3यदि लग्नेश सहज भाव में हो , तो जातक अपने सहयोगी – मित्रों से घिरा रहकर लाभान्वित होता है । बन्धु – बान्धवों का सुख उसे मिलता है ।
ऐसा जातक धर्मकार्यों और दान – पुण्य में विश्वास रखता है , लेकिन यदि लग्नेश निर्बल , पापाक्रान्त या पापदृष्ट हो , तो अशुभ फल मिलते हैं ।
यदि सहज भाव पर शुभ ग्रह की दृष्टि हो , तो जातक आजीवन स्वबाहुबल से जीविकोपार्जन करता रहता है ।
4 यदि लग्नेश चतुर्थ भावगत हो , तो जातक माता – पिता की सेवा करने वाला , बहुत काल तक माता – पिता का सुख पाने वाला तथा वाहन सुख से युक्त होता है । यदि ऐसा जातक राज्यसेवा में हो , तो उसके उच्चाधिकारी उस पर प्रसन्न रहते हैं । आनन्दमय जीवन व्यतीत करता हुआ ऐसा जातक किसी भी प्रकार के अभाव से रहित होता है ।
यदि लग्नेश व चतुर्थेश पापाक्रान्त हों तथा चतुर्थ भाव पर पापी ग्रहों की दृष्टि हो , तो उपर्युक्त फलों की हानि होती है ।
5 यदि लग्नेश पञ्चम भाव में हो , तो जातक त्यागी वृत्ति वाला , स्वभावतः सुशील और सत्कर्म करने वाला होता है ।
ऐसे जातक को धर्मपरायण व विख्यात पुत्रों की प्राप्ति होती है तथा वह स्वयं भी अपने कार्यों के कारण ख्याति अर्जित करता है । ऐसा जातक क्षमाशील , विद्याव्यसनी , साहित्यानुरागी , स्वाभिमानी , धुन का पक्का और ईश्वरभक्त होता है । यदि पञ्चमेश या पञ्चम भाव पाप प्रभाव में हों , तो सन्तानाभाब , अल्प विद्या , अल्प धन तथा सन्तान के कारण कष्ट सहन करने पड़ते हैं ।
6 यदि लग्नेश शत्रु भाव में स्थित हो , तो जातक प्रायः नीरोग रहता है । उसे धन और भूमि की प्राप्ति होती है तथा मातुल पक्ष ( ननिहाल ) से लाभ रहता है । ऐसा जातक शत्रुओं का मान – मर्दन करने वाला एवं कंजूस होता है । लग्नेश व षष्ठेश निर्बल या पापाक्रान्त हों तथा छठे भाव पर पाप प्रभाव हो , तो जातक अपने कर्मों से शत्रुओं की वृद्धि का दुःख भोगता है । रोग और शत्रु जीवन – भर उसका पीछा नहीं छोड़ते तथा उसे अपने कार्यों में प्रायः असफलता ही मिलती है ।
7 यदि लग्नेश जाया भाव में स्थित हो , तो ऐसा जातक तेजस्वी एवं शील स्वभाव वाला होता है । उसे पत्नी भी पतिपरायणा , सुशीला , रूपवती एवं लावण्यमयी मिलती है । ऐसे जातक को अपने जीवन में ही अपनी जीवन – सहचरी या सहचर का वियोग सहन करना पड़ता है । ऐसा जातक व्यवसाय में रहकर धन एवं ऐश्वर्य से सम्पन्न होकर , जीवन में विविध भोगों को भोगता है । ऐसा जातक प्रायः अधिक भ्रमण करता है ।
8 यदि लग्नेश अष्टम भाव में स्थित हो , तो जातक दीर्घायु और कृपण होता है तथा सदा धन सञ्चय करने में ही लगा रहता है । धन ही उसका सब कुछ होता है । जातक के ऐसे विचार उसे अन्य लोगों से अलग कर देते हैं । यदि अष्टम भाव और अष्टमेश शुभ ग्रह की दृष्टि में हों , तो जातक सौम्याकृति और बुद्धिमान् होता है , यदि अशुभ ग्रह की दृष्टि का योग हो , तो जातक कटु वक्ता तथा क्षीण शरीर होता है । भूमिगत धन , जुआ , सट्टा तथा लाटरी से ऐसा जातक अकस्मात् ही धनी बनने के स्वप्न लेता रहता है तथा परस्त्री से प्रीति रखता है ।
9 यदि लग्नेश नवम भाव में हो , तो ऐसा जातक विद्वान् व अधिक बन्धु बान्धवों वाला होता है । उसकी मित्रता बड़े – बड़े विद्वानों और अधिकारियों में होती है । वह धर्मात्मा , क्षमाशील , तेजस्वी और पराक्रमी होता है । उसके कार्यो के कारण समाज में उसको सम्मानित किया जाता है तथा देश – विदेश में उसकी ख्याति फैलती है ।
10 यदि लग्नेश दशम भाव में हो , तो जातक माता – पिता का परम भक्त होता है । गुरु व देवता के लिए उसके मन में अतिशय श्रद्धा होती है । उसे समाज में ख्याति मिलती है तथा राज्य पक्ष से लाभ रहता है । वह सुशील , पण्डित ( अच्छे – बुरे का विचार करने वाला ) और भाग्यवान् होता है भाग्य भी उसका साथ देता रहता है और वह आनन्दमय जीवनयापन करता हुआ विविध भोगों का भोग करता है ।
11 यदि लग्नेश आय भाव में हो , तो जातक धन और पुत्रों से युक्त होता है । उसे उच्च वाहन की प्राप्ति होती है । वह महापराक्रमी , तेजस्वी और विवेकशील होता है । परिश्रम करने से जी नहीं चुराता।पुत्रों के कारण भी उसे ख्याति मिलती है । ऐसे जातक के मित्रों की संख्या बहुत होती है तथा मित्र उसके सहायक भी होते हैं । जीवन में उसे किसी भी प्रकार का अभाव नहीं रहता ।
12 यदि लग्नेश व्यय भाव में हो , तो जातक स्वदेश को छोड़कर दूसरे देश में वास करने वाला , अपने बन्धु – बान्धवों एवं सगोत्रियों से वैर रखने वाला तथा अधिक व्ययशील होने से धनाभाव में जीने वाला होता है । उसे अपने कार्यों में प्रायः असफलता ही मिला करती है । ऐसा जातक बातचीत करने में चतुर स्वभावतया धूर्त और यात्रामय जीवनयापन करने वाला होता है ।